एक शिष्य ने गुरु से पूछा कि आपका ज्ञान पाने से पहले और बाद में क्या अनुभव है? गुरु ने जवाब दिया, ज्ञान पाने से पहले मैं उठता था, नहाता था, लकड़ी काटता था और रात को सो जाता था। ज्ञान पाने के बाद भी मैं यही काम करता हूं। मगर, अब एक फर्क आ गया है। पहले जब मैं यह करता था तो मेरा दिमाग अतीत और भविष्य में लगा रहता था। ज्ञान पाने के बाद अब जब भी मैं खाता हूं तो सिर्फ खाता हूं। जब नहाता हूं तो सिर्फ नहाता हूं। इस तरह से वर्तमान को जीता हूं। समय को अतीत, वर्तमान और भविष्य में बांटकर देखने की जरूरत है। कुछ लोग अपने अतीत से संचालित होते हैं, क्योंकि वे उसी से लिपटे रहते हैं। कुछ लोग भविष्य से बंधे रहते हैं, क्योंकि वे उसी से संचालित होते हैं। बेहतर यही है कि हम अपने समय का संतुलन बनाएं। जब जरूरत हो तो बीती बातों का संदर्भ ले लें और भविष्य के बारे में सोचें। यानी अतीत से सीखो, वर्तमान का आनंद लो और भविष्य की योजनाएं बनाओ। ऐसा कहा जाता है कि हिटलर की हार के कारणों में से एक कारण यह था कि उसने इतिहास से कुछ नहीं सीखा था। उसने रूस पर सर्दियों में हमला किया था। यदि उसने इतिहास से सीखा होता, तो उसे पता होता कि यही गलती नेपोलियन ने भी की थी। उसने भी रूस पर सर्दियों के दौरान आक्रमण किया था। इस कारण नेपोलियन ने अपने बहुत से आदमियों की जान गंवाई थी। अपनी प्राथमिकताओं को तय करें। समय को बर्बाद करने वाले कारणों को पहचानें। काम को बांटना सीखें और अपना काम खुश होकर करें। तभी आप पाएंगे कि आपके पास बहुत समय है। हम आमतौर पर विचारों से घिरे रहते हैं। जब मन में हलचल होती है, तो हम बार-बार भार महसूस करते हैं। एक मन की आवाज होती है और एक आत्मा की। मौन आत्मा की आवाज है। हम मौन का अनुभव नहीं कर पाते हैं, क्योंकि हमारे मन में हलचल होती रहती है। आत्मा की आवाज हमें विकास की ओर ले जाती है। वहीं, हलचल भरे मन की आवाज सोचने-समझने की शक्ति को कम कर देती है। आत्मा की आवाज को सुनने के लिए हमें अपने हलचल भरे मन की आवाजों को बंद करने की कोशिश करनी होगी। इस शांति को पाने का एक तरीका है ध्यान करना। इससे हम अपने मन और शरीर पर काबू पा सकते हैं।
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