दोस्तों,
भाग्य (LUCK) हमेशा धीरज का साथ देता है, सब्र का फल मीठा होता है यह सिर्फ कहावत मात्र नहीं है, आज इस पोस्ट में हम उन लोगों के जीवन की कुछ घटनाएँ आपके सामने रखेंगे, जिन्होंने अपने अथक प्रयास, और धैर्य के बदौलत बुलंदियों को छुआ है। सफलता का सही अर्थ उस व्यक्ति को ही पता होता है जिसने कितने ही ठोकरें खाई हों, जो कितने संघर्षों के बाद भी सफल होने के लिए जूझता रहा हो, जिसने कितने भी बार हिम्मत टूटने पर खुद को संभाला हो, जो बार-बार अपने आँसू पोंछकर कुछ कर दिखाने के लिए खड़ा हुआ हो, और जिसने इस बात को पूरी तरह से समझा हो कि जब तक फसल पूरी तरह से पक नहीं जाते तब तक सब्र करना ही बुद्धिमानी है इस बात को सार्थक सिद्ध किया हो.. वही जीवन में सफल हो सकता है, और वही सफलता का सही अर्थ हमें बता सकता है...
1. यूनानी सुवक्ता देमोस्थेनीज:- यूनानी सुवक्ता देमोस्थेनीज ने यह दिखा ही दिया कि वक्तृत्व की शक्ति राजा की शक्ति से भी बड़ी होती है। इनका जन्म ई.पू. 384 में हुआ था। ज्योतिषियों ने उसे एक सामान्य व्यक्ति बताया। वह हमेशा हकलाता था, शारीरिक रूप से दुर्बल था और प्रायः बीमार रहता था। उसके सहपाठी कभी उस पर हँसते तो कभी सहानुभूति जताया करते थे। उसके माता-पिता उसे बचपन में ही अनाथ छोड़कर चले गए, उसके चाचा ने उसकी सारी संपत्ति हड़प कर ली। देमोस्थेनीज ने उसके विरूद्ध न्यायलय में शिकायत की पर कोई सुनवाई नहीं हुई। उसने एक दिन देखा कि एक यूनान वक्ता ने श्रोताओं को मुग्ध कर लिया है और अत्यंत सम्माननीय बन गया है.. अपने दुःख तथा हताशा के बीच उसे भी महत्वपूर्ण बनने की तीव्र ईच्छा हुई।
देमोस्थेनीज ने एक प्रभावशाली वक्ता बनने का संकल्प कर लिया। लेकिन इस बीच बहुत कठिनाइयाँ थीं, हकलाने के कारण वह बीच में ही रुक जाता था, कोई लंबा वाक्य बोलने में उसे तकलीफ होती थी, वह एक साथ लम्बा वाक्य बोल नहीं पाता था। लेकिन लगातार अभ्यास से उसने इस कठिनाई को पार कर लिया। एक डॉक्टर की सलाह पर वह अपनी जीभ पर गोलियाँ रखकर शब्दों का सही तथा उच्च स्वर में उच्चारण का अभ्यास किया करता था. वह हर रोज समुद्रतट पर खड़ा होकर लहरों की आवाज से भी ऊँची आवाज में भाषण देने का अभ्यास किया करता था। वह प्रतिदिन 16 घंटे एकांत में विधि शास्त्रों तथा यूनानी पुराणों का अध्ययन और गहन चिंतन किया करता था। प्रभावशाली वक्तृत्व की कला में निपुण होने के लिए वह एक बड़े दर्पण के सामने खड़ा होकर एकाकी अभ्यास किया करता था। लोगों कीसंगति से बचने हेतु उसने अपना आधा सर मुंडा लिया और तहखाने में जा बैठा।
तीन वर्ष के अथक प्रयास और धैर्य के बाद वह ज्ञान का भंडार लेकर बाहर आया.. यूनानी राजा फिलिप ने कहा था- “चाहे कोई सारा विश्व भी जीत ले पर भाषण में वह देमोस्थेनीज को कभी भी नहीं हरा सकता।“ अब देमोस्थेनीज एक शक्ति का स्वामी बन चूका था।
देमोस्थेनीज का धैर्य तथा लगन अतुलनीय था, इसके फलस्वरूप प्राप्त होने वाली उनकी सफलता भी अतुलनीय थी। धैर्य के बदौलत आप जो चाहते हैं, वो पा सकते हैं!
2. डॉ. भीमराव अम्बेडकर:- डॉ. अम्बेडकर के जीवन की संघर्ष भरी कहानी आप सबने पढ़ी होगी!
विदेश में पढ़ाई के दिनों में डॉ. अम्बेडकर सिर्फ अध्ययन में ही डूबे रहते थे, उनके जीवन में यह कथन चरितार्थ हुआ था – ‘ज्ञानातुराणा न सुखं न निद्रा’ इसका अर्थ होता है ‘ज्ञान की खोज करने वालों को न सुख नसीब होता है और न ही नींद’ उन्हें पता था कि वे शिक्षा प्राप्त करने के लिए ही अपने घर से हजारों मील दूर आये हुए हैं, उन्होंने सोचा कि सुख के प्रलोभन में समय नष्ट करने का अर्थ है अपने कर्तव्य और देश की अवहेलना करना। इसीलिए ही वे सिनेमा तथा व्यर्थ ही नगर की सड़कों पर घूमने में अपना समय बर्बाद नहीं करते थे। उन्हें पढ़ने का बड़ा ही लोभ था, पुस्तकें देखते ही उनकी थकावट जैसे गायब ही हो जाती थी, वे विशेष योग्यता प्राप्त करने के लिए लन्दन भी गए हुए थे। वे घंटों पुस्तकालय में बैठे रहते, उसके बंद होने तक वो सिर्फ अध्ययन किया करते थे.. वे बड़े ही अल्पाहारी थे और अपना सारा समय ज्ञानार्जन में लगाया करते थे, उनकी ज्ञान क्षुधा बड़ी ही प्रबल थी।
डॉ. अम्बेडकर के धैर्यपूर्वक सतत अभ्यास से ही आज देश को अलग पहचान नसीब हो पाई. उनके ज्ञान की चर्चा आज देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी उन्होंने अपने ज्ञान की छाप छोड़ रखी है।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर के बारे में अधिक जानने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये!
कार्लायन कहते हैं, ‘कार्य को पूरा करने का दृढ़ संकल्प ही एक सबल मनुष्य की निर्बल से भिन्न पहचान बनाता है।’
डॉ. जॉनसन का कहना है कि ‘शक्ति के सहसा उपयोग से नहीं, बल्कि सतत दीर्घकालीन प्रयास से महान कार्य संपन्न किये जाते हैं।“
एक लैटिन कहावत में कहा गया है, ‘अविराम अभ्यास सभी कठिनाइयों को दूर भगा देता है।’
3. कोलंबस की यात्रा:- भारत की खोज में कोलंबस ने अपने जलपोत को अज्ञात महासागर में आगे बढ़ाते हुए कितना ज्यादा साहस दिखाया होगा! जब कोलम्बस अपने निर्धारित लक्ष्य तक नहीं पहुँच सके तो उनके साथियों ने निराश होकर उनका बहुत विद्रोह किया और उनको समुद्र में फेंकने तक को तैयार हो गए। कठिनाइयों के इतने बड़े विशाल महासागर तथा अपने लोगों के विरोध में उन्होंने आश नहीं छोड़ी. अनंत साहस और आत्मविश्वास के साथ वे हमेशा धैर्य लिए आगे बढ़ते रहे और अंत में उन्होंने विजय प्राप्त कर ही ली..
4. एडीसन का धैर्य:- विद्दुत बल्ब के आविष्कारक थामस अल्वा एडीसन सौ से ज्यादा बार अपने प्रयोग में असफल रहने के बावजूद धैर्यपूर्वक अपने कार्य में लगे, जब उनसे पूछा गया, ‘क्या आप इतनी असफलताओं से निराश नहीं हुए? इन असंख्य प्रयोगों से आप बोर नहीं हुए?’ उन्होंने उसका उत्तर देते हुए कहा- ‘नहीं, मैं सत्य और मिथ्या को जानने का प्रयास करते हुए ऊबा नहीं, मुझे खुशी इस बात की है कि 100 भूलें करने के बाद मेरी सत्य की खोज सार्थक हुई, यह सब मेरे धैर्य का परिणाम है, यदि मैंने कोशिश करना छोड़ दिया होता तो शायद ही आज मेरा प्रयोग सफल हो पाता, मैं लगा रहा, सब्र किया और आज मेरी प्रयोग सफल हुई।‘
5. न्यूटन के सब्र का फल:- न्यूटन ने वर्षों की खोज में अपना जीवन लगा दिया है और उसका परिणाम लिखकर एक मेज पर रख दिया था। उनके कुत्ते से लगकर एक जलती मोमबत्ती उन कागज़ पर गिर पड़ी और सब कुछ जलकर राख हो गया। न्यूटन बड़े ही दुखी हुए पर उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी.. उन्होंने दोबारा सारे प्रयोग किये, संकल्प किया कि दृढ़-इच्छाशक्ति के बल पर उन्हें पूरा करने में सफल हुए. उनका नजरिया ही अलग था- सब कुछ जलकर राख हो जाने के बाद ही उन्होंने कहा- “इतने दिनों तक जब मैंने धैर्य रखकर अपना प्रयोग किया तो इसी धैर्य के साथ मैं आगे भी अपना प्रयोग जारी रखूँगा...।“
दोस्तों, सब्र का फल मीठा होता है इस एक छोटे-से वाक्य में सफलता का रहस्य (secret of success) छुपा हुआ है। इतने महान व्यक्तियों ने इसका फायदा उठाया है क्योंकि उन सबको पता था कि आप तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक आप सब्र के साथ धैर्य रखकर काम नहीं करेंगे।
यदि आपने रोपे हुए पौधे को यथेष्ट खाद दिया है, बीच-बीच में सिंचाई भी की है तथा उसके चारों तरफ बाड़ भी लगाया है लेकिन पौधे के वृक्ष बनकर फल देने की गति को आप कभी भी तीव्र नहीं कर सकते। यदि वह शीघ्र फल देने वाला भी हो तब भी आपको उसके पूर्ण विकसित होने की प्रतिक्षा करनी होगी। वह पूरा वृक्ष बनने के बाद ही फल देने को तैयार देगा. कर्मों के फल की चिंता किये बिना ही धैर्यपूर्वक सुकर्म करते जाइए। अंग्रेजी में एक कहावत है- ‘A Short cut may cut you short’ इसका मतलब है कि ‘किसी संक्षिप्त उपाय को अपनाने पर विफल होने की ही अधिक संभावना है’ इसलिए धैर्य रखिये, आप अपने लाइफ में जो पाना चाहते हैं, वो आपको जरूर मिलेगा लेकिन बस धैर्य रखिये, हड़बड़ाइये नहीं, अपनी आश मत खोइए, यकीन रखिये खुद पर... बस पूरे धैर्य के साथ आपको आगे बढ़ना है, उन लोगों के नाम के साथ अपने नाम को शामिल करना है जो सफलता के शिखर पर पहुँच चुके हैं, इसलिए बस अपने कार्य में लगे रहिये, वृक्ष को बड़े होने दीजिए, फल को पकने दीजिए उसके बाद उसके स्वाद का आनंद आपको ही लेना है इसलिए अभी बस धैर्य रखिये और अपना कर्म करते जाइए.........।।।
दोस्तों आपको यह कहानी कैसी लगी अपनी राय जरुर दीजिये
धन्यवाद !
No comments:
Post a Comment