03जुला
दोस्तो हम सफलता प्राप्तकरने के लिए हमेशा ही सीधा और छोटा रास्ता चाहते है लेकिन सफलता कभी एकमुश्त नहीं मिलती क्योंकि इसका रास्ता लम्बा और कठिन है। यह तो पड़ाव दर पड़ाव पार किया जाने वाला एक ऐसा सफर है जिसमे हमे दिन रात पूरी लगन से मेहनत करनी पडती है। अक्सर ऐसा होता है कि हम छोटे छोटे पड़ावों पर ही जीत के उत्सव में डूब जाते हैं, और अपने लक्ष्य को भूल जाते है। दोस्तो छोटी-छोटी कामयाबियों का जश्न मनाना तो जरूरी है लेकिन इसके उत्साह में असली लक्ष्य को ना भूला जाए। अक्सर लोग यहीं मात खा जाते हैं।
हमें अपना लक्ष्य तय करते समय ही यह भी तय कर लेना चाहिए कि हमारा मूल उद्देश्य क्या है और इसमें कितने पड़ाव आएंगे। अगर हम किसी छोटी सी सफलता या असफलता में उलझकर रह गए तो फिर बड़े लक्ष्य तक जाना कठिन हो जाएगा।
दोस्तो उदाहरण के लिए महाभारत का युद्ध, जो कौरवो तथा पांडवो के मध्यहुआ था, में चलते हैं। कौरव और पांडव दोनों सेनाओं के व्यवहार में अंतर देखिए। कौरवों के नायक यानी दुर्योधन, दु:शासन, कर्ण जैसे योद्धा और पांडव सेना से डेढ़ गुनी सेना होने के बाद भी वे हार गए। धर्म-अधर्म तो एक बड़ा कारण दोनों सेनाओं के बीच था ही लेकिन उससे भी बड़ा कारण था दोनों के बीच लक्ष्य को लेकर अंतर। कौरव सिर्फ पांडवों को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से लड़ रहे थे।
जब भी पांडव सेना से कोई योद्धा मारा जाता, कौरव उत्सव का माहौल बना देते, जिसमें कई गलतियां उनसे होती थीं। अभिमन्यु को मारकर तो कौरवों के सारे योद्धाओं ने उसके शव के इर्दगिर्द ही उत्सव मनाना शुरू कर दिया।
वहीं पांडवों ने कौरव सेना के बड़े योद्धाओं को मारकर कभी उत्सव नहीं मनाया। वे उसे युद्ध जीत का सिर्फ एक पड़ाव मानते रहे। भीष्म, द्रौण, कर्ण, शाल्व, दु:शासन और शकुनी जैसे योद्धाओं को मारकर भी पांडवों के शिविर में कभी उत्सव नहीं मना।
उनका लक्ष्य युद्ध जीतना था, उन्होंने उसी पर अपना ध्यान टिकाए रखा। कभी भी क्षणिक सफलता के बहाव में खुद को बहने नहीं दिया।
तो दोस्तो हमे अपनी मंजिल के हर पडाव को जीत कर उत्साह तो जरूर मनाना चाहिए लेकिन अपना ध्यान लक्ष्य से क्भी नही हटाना चाहिए नही तो एक बार फिर असफल होना पडेगा।
धन्यवाद
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