Friday, 20 November 2015

मन की एकाग्रता Concentration of mind


दोस्तों,
स्वामी विवेकानंद शिकागो में व्याख्या देने के बाद अमेरिका में उदार मानव धर्म के वक्ता के रूप में प्रसिद्ध हो गए। वहां स्वामी जी वेदांत दर्शन पर प्रवचन दिया करते थे। इस संबंध में उनका प्रवास अमेरिका के उन अंदरूनी इलाकों में भी होता था, जहां धर्मांध और संकीर्ण विचारधारा के लोग रहते थे।
एक बार स्वाम जी एक ऐसे ही क्षेत्र में व्याख्या के लिए बुलाया गया, जहां के लोग अत्यंत संकुचित मानसिकता रखते थे। एक खुले मैदान में लकड़ी के बक्सों को जमाकर मंच बनाया गया।
स्वामी जी उस पर खड़े होकर वेदांत, योग और ध्यान की व्याख्या करने लगे। लोग उनकी बातों को गौर से सुन रहे थे। थोड़ी देर बाद उन्हीं लोगों में से कई लोगों ने बंदूकें निकाल लीं और स्वामी जी पर गोलियां बरसाने लगे। नीचे रखे लकड़ी के बक्से छलनी हो गए।

लेकिन स्वामी जी धाराप्रवाह तरीके से अपना भाषण देते रहे। उन्हें थोड़ा सा भी डर नहीं लगा। तब गोली चलाने वाले लोगों ने पूछा, आप जैसा व्यक्ति हमने पहले कभी नहीं देखा। हम आप पर निशाना लगा रहे थे। जरा सी चूक हो जाती तो आप मर भी सकते थे।

तब स्वामी जी ने कहा, जब में व्याख्यान दे रहा था तो मुझे बाहरी वातावरण का ज्ञान नहीं था। मेरा चित्त योग, वेदांत और ध्यान की गहराइयों में था।
अथार्त 
आशय यह है कि मन के एकाग्र होने पर ऐसी शक्तियां विकसित होती हैं जो परा मानवीय लगती हैं। ऐसे में उन चीजों को समझने की दृष्टि मिलती है। जिससे मन भय और दुर्बलता से छुटकारा पा जाता है।
एकाग्रचित्त होकर किया गया कार्य ऐसे पूर्ण होता है, जैसे अज्ञात रूप से मानव की सहायता कर रहा हो, इस प्रकार एकाग्रता ही ध्यान और योग की पहली सीढ़ी है।

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