दोस्तों आज देश में युवाओं की भागीदारी को लेकर बहस छिड़ी हुई है. हर तरफ यही सवाल है कि आखिर हम युवाओं को किस तरह विकास की राह में अपना सारथी बना पाएंगे. इस सवाल का एक जवाब हो सकता है कि युवा अपना आदर्श ऐसे लोगों को बनाएं जो वाकई जमीनी स्तर पर युवाओं के लिए कर्तव्यबद्ध होते हैं. ऐसे ही एक अहम आदर्श हैं -स्वामी विवेकानंद.
सन् 1902 में , एक professor ने अपने छात्र से पुछा....क्या वह भगवान था , जिसने इस संसार की हर वस्तु को बनाया ?
छात्र का जवाब : हां ।
उन्होंने फिर पुछा :- शैतान क्या हैं?
क्या भगवान ने इसे भी बनाया ?
छात्र चुप हो गया... .....!
फिर छात्र ने आग्रह किया कि-क्या वह उनसे कुछ सवाल पुछ सकता हैं?Professor ने इजाजत दी.
उसने पुछा-क्या ठण्ड होती हैं ?
Professor ने कहा: हां, बिल्कुल क्या तुम्हे यह महसुस नहीं होती?
Student ने कहा: मैं माफी चाहता हुं सर, लेकिन आप गलत हो । गर्मी का पुर्ण रुप से लुप्त होना ही ठण्ड कहलाता हैं, जबकि इसका अस्तित्व नहीं होता । ठण्ड होती ही नहीं ?
Student ने फिर पुछा : क्या अन्धकार होता हैं ?Professor ने कहा: हां ,होता हैं
Student ने कहा: आप फिर गलत है सर ।अन्धकार जैसी कोई चीज नहीं होती, वास्तव में इसका कारण रोशनी का पुर्ण रुप से लुप्त होना हैं .सर हमने हमेशा गर्मी और रोशनी के बारे में पढा और सुना हैं । ठण्ड और अन्धकार के बारे में नहीं ।
वैसे ही भगवान हैं....और.... बस इसी तरह शैतान भी नहीं होता ,वास्तव में , पुर्ण
रुप से भगवान में विश्वास, सत्य और आस्था का ना होना ही शैतान का होना हैं।
वह छात्र थे... स्वामी विवेकानन्द..!
मित्रो, जीवन में न दुख: होता हैं ना तकलीफ वास्तव में हममें जो खासियत, काबिलियत ,खुद में विश्वास और सकारात्मक रवैये की कमी को ही हम दुख: और तकलीफ बना देते हैं ।"
उसने बेहिसाब दिया हैं जो हम मानते नहीं, मानस जन्म अनमोल जिसे हम पहचानते नही..... "
वह छात्र थे... स्वामी विवेकानन्द..!
मित्रो, जीवन में न दुख: होता हैं ना तकलीफ वास्तव में हममें जो खासियत, काबिलियत ,खुद में विश्वास और सकारात्मक रवैये की कमी को ही हम दुख: और तकलीफ बना देते हैं ।"
उसने बेहिसाब दिया हैं जो हम मानते नहीं, मानस जन्म अनमोल जिसे हम पहचानते नही..... "
स्वामी
विवेकान्द जी के विचार
स्वामी विवेकानंद आधुनिक भारत के एक क्रांतिकारी विचारक माने जाते हैं. 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में जन्मे स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ था. इन्होंने अपने बचपन में ही परमात्मा को जानने की तीव्र जिज्ञासावश तलाश आरंभ कर दी. इसी क्रम में उन्होंने सन 1881 में पहली बार रामकृष्ण परमहंस से भेंट की और उन्हें अपना गुरु स्वीकार कर लिया तथा अध्यात्म-यात्रा पर चल पड़े. काली मां के अनन्य भक्त स्वामी विवेकानंद ने आगे चलकर अद्वैत वेदांत के आधार पर सारे जगत को आत्म-रूप बताया और कहा कि “आत्मा को हम देख नहीं सकते किंतु अनुभव कर सकते हैं. यह आत्मा जगत के सर्वांश में व्याप्त है. सारे जगत का जन्म उसी से होता है, फिर वह उसी में विलीन हो जाता है. उन्होंने धर्म को मनुष्य, समाज और राष्ट्र निर्माण के लिए स्वीकार किया और कहा कि धर्म मनुष्य के लिए है, मनुष्य धर्म के लिए नहीं. भारतीय जन के लिए, विशेषकर युवाओं के लिए उन का नारा था – “उठो, जागो और लक्ष्य की प्राप्ति होने तक रुको मत.”
स्वामी विवेकानंद जी का शिकागो में भाषण
31 मई, 1883 को वह अमेरिका गए. 11 सितंबर, 1883 में शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में उपस्थित होकर अपने संबोधन में सबको भाइयों और बहनों कह कर संबोधित किया. इस आत्मीय संबोधन पर मुग्ध होकर सब बड़ी देर तक तालियां बजाते रहे. वहीं उन्होंने शून्य को ब्रह्म सिद्ध किया और भारतीय धर्म दर्शन अद्वैत वेदांत की श्रेष्ठता का डंका बजाया. उनका कहना था कि आत्मा से पृथक करके जब हम किसी व्यक्ति या वस्तु से प्रेम करते हैं, तो उसका फल शोक या दुख होता है. अत: हमें सभी वस्तुओं का उपयोग उन्हें आत्मा के अंतर्गत मान कर करना चाहिए या आत्म-स्वरूप मान कर करना चाहिए ताकि हमें कष्ट या दुख न हो.
अमेरिका में चार वर्ष रहकर वह धर्म-प्रचार करते रहे तथा 1887 में भारत लौट आए. भारतीय धर्म-दर्शन का वास्तविक स्वरूप और किसी भी देश की अस्थिमज्जा माने जाने वाले युवकों के कर्तव्यों का रेखांकन कर स्वामी विवेकानंद सम्पूर्ण विश्व के ‘जननायक‘ बन गए.
फिर बाद में विवेकानंद ने 18 नवंबर,1896 को लंदन में अपने एक व्याख्यान में कहा था, मनुष्य जितना स्वार्थी होता है, उतना ही अनैतिक भी होता है. उनका स्पष्ट संकेत अंग्रेजों के लिए था, किंतु आज यह कथन भारतीय समाज के लिए भी कितना अधिक सत्य सिद्ध हो रहा है.
पराधीन भारतीय समाज को उन्होंने स्वार्थ, प्रमाद व कायरता की नींद से झकझोर कर जगाया और कहा कि मैं एक हजार बार सहर्ष नरक में जाने को तैयार हूं यदि इससे अपने देशवासियों का जीवन-स्तर थोडा-सा भी उठा सकूं.
स्वामी विवेकानंद ने अपनी ओजपूर्ण वाणी से हमेशा भारतीय युवाओं को उत्साहित किया है. उनके उपदेश आज भी संपूर्ण मानव जाति में शक्ति का संचार करते है. उनके अनुसार, किसी भी इंसान को असफलताओं को धूल के समान झटक कर फेंक देना चाहिए, तभी सफलता उनके करीब आती है. स्वामी जी के शब्दों में ‘हमें किसी भी परिस्थिति में अपने लक्ष्य से भटकना नहीं चाहिए‘.
विवेकानंद जी का निधन
स्वामी विवेकानंद ने अशिक्षा, अज्ञान, गरीबी तथा भूख से लडने के लिए अपने समाज को तैयार किया और साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय चेतना जगाने, सांप्रदायिकता मिटाने, मानवतावादी संवेदनशील समाज बनाने के लिए एक आध्यात्मिक नायक की भूमिका भी निभाई. 4 जुलाई, 1902 को कुल 39 वर्ष की आयु में विवेकानंद जी का निधन हो गया. इतनी कम उम्र में भी उन्होंने अपने जीवन को उस श्रेणी में ला खड़ा किया जहां वह मरकर भी अमर हो गए.
जब-जब मानवता निराश एवं हताश होगी, तब-तब स्वामी विवेकानंद के उत्साही, ओजस्वी एवं अनंत ऊर्जा से भरपूर विचार जन-जन को प्रेरणा देते रहेंगे और कहते रहेंगे-‘उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति से पूर्व मत रुको.’
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