मनुष्य की सबसे बड़ी पीड़ा यही है कि मनुष्य के पास कल्पना है। कल्पना के कारण वह श्रेष्ठतर का हमेशा सपना देख लेता है। सुंदरतम स्त्री क्लियोपैत्रा— तुम्हें मिल जाए, तो भी तुम सोचोगे कि आंख थोड़ी और काली हो सकती थी। कि आंख थोड़ी और मछलियों जैसी हो सकती थी। कि चेहरा और थोड़ा गोरा हो सकता था, कि और थोड़ा सांवला हो सकता था। कि और सब तो ठीक है, लेकिन बाल मेघों की घटाओं जैसे नहीं। कि और सब तो ठीक है, नाक थोड़ी लंबी है, कि थोड़ी छोटी है।
मनुष्य के पास कल्पना है। कल्पना के कारण वह श्रेष्ठतर की सदा ही चिंतना कर सकता है। तुम जाकर ताजमहल में भी भूल—चूके खोज सकते हो। अक्सर लोग यही करते हैं। ताजमहल में जाकर भूल—चूके खोजते हैं कहां कमी रह गयी? कहां..? ऐसा तो आदमी खोजना मुश्किल है जिसके पास कल्पना न हो। कल्पना ही तो सताती है, परेशान करती है। कल्पना कहती है और थोड़ा सुधार लो, फिर भोग लेना, और थोड़ा सुधार लो, फिर भोग लेना।
दस हजार हैं, दस लाख हो जाने दो फिर भोग लेना। दस हजार तो जल्दी चुक जाएंगे। दस लाख कर लो। जब तक दस लाख हो पाते हैं, कल्पना चार डिग आगे बढ़ जाती है। वह करोड़ों की बात करने लगती है। कल्पना तुम्हारे साथ ठहरती नहीं। कल्पना सदा उड़ी—उड़ी है, तुमसे सदा आगे है। इसलिए कल्पना तुम्हें कभी इस हालत में नहीं आने देती कि तुम कह सको, अब तैयार हूं भोग लूं। इसके पहले कि कल्पना थके, मौत आ जाती है। कल्पना कभी थकती ही नहीं।
जैसे मौत और कल्पना में होड़ लगी है। मौत अभी तक कल्पना को थका नहीं पायी। जिसकी कल्पना को मौत ने थका दिया, वही बुद्ध हो गया। जिसने जान लिया कि कल्पना से तो कभी भी पूर्ति होने वाली नहीं है, यह तो बढ़ती ही जाएगी, बढ़ती ही जाएगी। यह तो अमर—बेल है। बिना जड़ों के फैलती चली जाती है, फैलती चली जाती है। वृक्षों का रस सोख लेती है। खुद कुछ भी नहीं देती। चूस लेती है पूरे जीवन को। अमर—बेल है। बड़ा प्यारा नाम दिया है बड़ी खतरनाक बेल को, अमर—बेल कहा है। अमर—बेल ठीक ही कहा है, क्योंकि मरती नहीं। वृक्ष मर जाते हैं, बेल नहीं मरती। एक वृक्ष मरता है, तब तक वह दूसरे वृक्ष पर सरक जाती है। वृक्षों से वृक्षों पर यात्रा करती रहती है, कभी मरती नहीं। उसके पास मरने का कोई कारण नहीं, क्योंकि जड़ें नहीं हैं। जड़ हो तो कोई चीज मरती है। जड़ सूख जाए, तो मर जाए। उसके पास जड़ नहीं है। बिना जड़ के है। हवा में चलती है। शोषण से जीती है। शोषण करने को यह वृक्ष नहीं होगा, दूसरा वृक्ष होगा। न उसमें पत्ते लगते, न फूल लगते, न फल लगते। बाझ है।
कल्पना से बाझ तुमने कोई और चीज देखी? कुछ भी नहीं लगता। मगर लगने के सपने दिए चली जाती है। जिस दिन तुम यह देख लोगे अमर—बेल है, उसी दिन तुम जागोगे। उस दिन तैयारी छोड़ोगे, तुम जीओगे। उस दिन तुम कहोगे कि आज तो जी लें, जितनी तैयारी है उतने से जी लें।
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