ध्यान एक तकनीक है, एक पथ है जो हमें बाहरी दुनिया से अंदर की दुनिया में ले जाता है। जब हमारे विचार बाहर की तरफ बह रहे होते हैं, हम ध्यान में नहीं होते लेकिन जब विचारों का प्रवाह अंदर की तरफ होता है तब संपूर्ण ध्यान की स्वर्णिम संभावना जाग्रत हो जाती है। जब आँखें दुनिया पर केंद्रित होती हैं तब दृष्टि भी दुनियावी हो जाती है। जब कान बाहरी आवाजों पर ध्यान देने लगते हैं तब वे अंतर्मन की पुकार सुनने के लिए बहरे हो जाते हैं। ऐसे ही बाहरी खुशबुओं की आदी नाक आत्मा की सुगंध नहीं पहचान सकती। जुबान स्वाद के लिए तरसती है और त्वचा स्पर्श के लिए तड़पती है। इस तरह हमारी सारी इन्द्रियाँ पूरी तरह से बाहरी दुनिया के प्रति आकर्षित रहती हैं। प्रभु के निकट होने के लिए एक ऐसी तकनीक की जरूरत होती है जो हमें बाहरी दुनिया के प्रभुत्व से मुक्ति दिला सके। इसके साथ ही यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि इन बाहरी बंधनों से मुक्ति मात्र ही ध्यान नहीं है; यह तो केवल इसकी तैयारी है। ध्यान के अधिसंख्य सिद्धांतों में अगर आँखें बंद करके बैठने, किसी शांत कक्ष में बैठने, यहाँ तक कि एकांत या गुफा में वास की बात कही गई है तो वह इसीलिए कि आपका बाहरी दुनिया से बंधन टूट जाए। हमारी समस्त इंद्रियों का वापस खुद से संबंध जुड़ जाए। पर यह केवल ध्यान में प्रवेश की तैयारी है। वास्तविक ध्यान (स्व-ध्यान) वह है जिसमें आप नजारों से दूर होकर अपनी नजर वापस पा लें। आपके कान आपकी ही आवाज को सुन सके। सभी इन्द्रियाँ स्व में स्थित हो जाएँ, स्वस्थ हो जाएँ। जब इंद्रियों को ऐसा प्रशिक्षण देने की तैयारी पूरी होती है तब ध्यान प्रारंभ होता है। अब हम अंदर की दुनिया में प्रवेश करने को तैयार होते हैं। अब अंतस में बिना प्रयास के प्रवेश होता है।
ध्यान समर्पण है
वास्तव में ध्यान साक्षी को समर्पण है। विभिन्न लोग साक्षी को ईश्वर, अल्लाह, गॉड, सेल्फ, स्वसाक्षी, चेतना, परमानंद, परम आयाम, आदि अलग अलग नामों से पुकारते हैं। ध्यान हमारे भीतर मौजूद उस सोर्स से संपर्क में है जो गहरी नींद में भी जाग रहा है; यह वह आत्म सजगता है जो अनभिज्ञता में भी उपस्थित रहती है।
ध्यान रास्ता है; और स्वयं पर ध्यान मंजिल है
जागरूकता विकसित करने अथवा एकाग्रता में सुधार की तकनीकों को भी ध्यान कहा जाता है। वास्तव में यह तथाकथित ध्यान अथवा एकाग्रता के अभ्यास सेल्फ मेडिटेशन के मार्ग हैं। सेल्फ मेडिटेशन का अर्थ है सेल्फ पर ध्यान करना, उस निराकार, सार्वभौमिक, सेल्फ पर ध्यान केंद्रित करना, जो सब जगह और हमारे भीतर भी उपस्थित है। यही ध्यान का वास्तविक उद्देश्य है। इसीलिए ‘सेल्फ-मेडिटेशन’ वास्तव में अधिक सटीक शब्द है। सरल रूप में समझा जाए तो एकाग्रता का विकास ध्यान की तरफ आवश्यक कदम है पर यह ध्यान का वास्तविक लक्ष्य नहीं है। एकाग्रता वास्तविक ध्यान की सीढ़ी पर एक चरण मात्र है। जब हम ध्यान करते हैं तो निश्चित ही एकाग्रता विकसित होती है किंतु यदि कोई एकाग्रता को विकसित करने के लिए ही ध्यान करे तो वह अंतिम लाभ से विमुक्त रहता है। वह अंतिम लक्ष्य से भटक जाता है। कई बार लोग सेल्फ की अनुभूति के लिए ध्यान के पथ पर चलते हैं किंतु मात्र एकाग्रता में विकास अथवा कुछ काल्पनिक चमत्कारिक शक्तियों के भ्रम में उलझ जाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि वे वास्तविक लक्ष्य से दूर रहते हैं। वे इस गलतफहमी में जीते हैं कि लक्ष्य के पथ पर मिले कुछ लाभ ही लक्ष्य हैं।
ध्यान तीर है
ध्यान एक तीर की भांति है, जो दो तरह से आगे बढ़ता है। पहला यह सीधे लक्ष्य की तरफ जा सकता है अथवा लक्ष्य की तरफ केंद्रित व्यक्ति की तरफ। ध्यान बाहर की दिशा में भी जा सकता है अथवा यह अंतस की तरफ यात्रा प्रारंभ कर सकता है। इसका अर्थ है कि ध्यान स्वयं ध्यानकर्ता पर ध्यानस्थ होता है!
ध्यान संपदा है
ध्यान इंसान की चेतना के स्तर को बढ़ाता है। इसकी वजह से वह जीवन में सही फैसले लेने में सक्षम हो पाता है। वह हमेशा प्रसन्न रहता है; उसकी प्रसन्नता दूसरों के लिए प्रसन्नता की वजह बनने से आती है। यही कारण है कि वह इंसान जिसने ध्यान की सच्ची संपत्ति को प्राप्त कर लिया वह कभी भी अपनी चेतना के उच्च स्तर को नहीं खोता है।
ध्यान धर्म है
ध्यान हमारा सच्चा धर्म है। जीवन में केवल हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई अथवा यहूदी होना ही पर्याप्त नहीं है। यह सभी धर्म के स्वीकृत मार्ग हैं, इनमें से प्रत्येक में हमारे वास्तविक स्वभाव की खोज और इसमें स्थित होने के अपने तरीके हैं। विश्वास की विचारधाराओं से ऊपर उठकर अपनी वास्तविक प्रकृति को जानना और इसमें शाश्वत रूप से स्थित होना ही मौलिक धर्म है। ध्यान ही हमारी वास्तविक प्रकृति है, हमारी मूल मनोवृत्ति है। धर्म का वास्तविक अर्थ है, हमारी सर्वाधिक सहज प्रकृति तथा इसके विस्तार के रूप में सोर्स से एकाकार हो जाना!
ध्यान के लाभ
- निर्णय लेने की शक्ति में वृध्दि
- विचारों और शरीर से विमुक्ति
- संवेदनशीलता में वृध्दि
- भावनाओं और इच्छाओं पर बेहतर नियंत्रण
- कार्य करने की क्षमता में वृध्दि
- स्मृति और एकाग्रता में वृध्दि
- त्वरित बुध्दिमत्ता में विकास
- जागरूकता
- ऊर्जा का उच्च स्तर
- समस्याओं के समाधान की महान शक्ति
- मौन के आनंद का अनुभव लेने की क्षमता
- संपूर्ण विश्रांति तथा शरीर एवं मस्तिष्क के स्वास्थ्य का संरक्षण
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